Ghalib Shayari in Hindi

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Mirza Ghalib, one of the most celebrated Urdu poets, left an indelible mark on the world of literature with his exquisite Shayari.

His verses are a mesmerizing blend of emotions, philosophy, and deep introspection. Ghalib’s Shayari, renowned for its depth and lyrical beauty, has transcended time and continues to captivate hearts to this day.

This collection is a treasure trove of Ghalib Shayari in Hindi, showcasing the brilliance of his poetic genius and offering a glimpse into the realms of love, pain, and the human experience.

हुआ जब गम से यूँ बेहिश तो गम क्या सर के कटने का,
ना होता गर जुदा तन से तो जहानु पर धरा होता!


मेरे बारे में कोई राय मत
बनाना गालिब
मेरा वक़्त भी बदलेगा
तेरी राय भी


ता फिर न इंतज़ार में नींद आये उम्र भर,
आने का अहद कर गये आये जो ख्वाब में।


फ़िक्र-ए-दुनिया में सर खपाता हूँ
मैं कहाँ और ये वबाल कहाँ !!


गुनाह कर के कहाँ जाओगे
ग़ालिब
ये ज़मी ये आसमान
सब उसी का है


आता है दाग-ए-हसरत-ए-दिल का शुमार याद,
मुझसे मेरे गुनाह का हिसाब ऐ खुदा न माँग।


जो कुछ है महव-ए-शोख़ी-ए-अबरू-ए-यार है,
आँखों को रख के ताक़ पे देखा करे कोई !!


न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,
डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !


नसीब
हाथों की लकीरों पे
मत जा ऐ ग़ालिब
नसीब उन के भी होते है
जिनके हाथ नहीं होते


तू मुझे भूल गया हो तो पता बतला दूं
कभी फ़ितराक में तेरे कोई नख़्चीर भी था


चाँदनी रात के खामोश सितारों की कसम,
दिल में अब तेरे सिवा कोई भी आबाद नहीं।


रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है !!


तुम न आए तो क्या सहर न हुई
हाँ मगर चैन से बसर न हुई
मेरा नाला सुना ज़माने ने
एक तुम हो जिसे ख़बर न हुई


हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है


ये चंद दीन की दुनिया है ग़ालिब
यहाँ पलकों पर बिठाया जाता है
नज़रों से गिराने के लिए..


इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ग़ालिब,
कि लगाए न लगे और बुझाए न बने।


यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है


ताउम्र बस एक यही
सबक याद रखिये
इश्क़ और इबादत में
नियत साफ़ रखिये


हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था
आप आते थे मगर कोई अनागीर भी था


हैं और भी दुनिया में सुखनवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि ग़ालिब का है अंदाज़-ए-बयाँ और।


वो आए घर में हमारे, खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको, कभी अपने घर को देखते हैं


हम को मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन,
दिल के खुश रखने को ‘गालिब’ ये खयाल अच्छा है.


इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया।
वर्ना हम भी आदमी थे काम के।


सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है
देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा
मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है


इश्क से तबियत ने जीस्त का मजा पाया,
दर्द की दवा पाई दर्द बे-दवा पाया।


क़र्ज़ की पीते थे मय लेकिन समझते थे कि हां
रंग लावेगी हमारी फ़ाक़ा-मस्ती एक दिन


हजारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पे दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमां लेकिन फिर भी कम निकले


मेरे बारे में कोई राय मत बनाना ग़ालिब,मेरा वक्त भी बदलेगा तेरी राय भी…!


हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है


‘ग़ालिब’ बुरा न मान जो वाइ’ज़ बुरा कहे
ऐसा भी कोई है कि सब अच्छा कहें जिसे …


हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी कि हर ख़्वाहिश पर दम निकले
बहुत निकले मेरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले


रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है


कोई दिन गर ज़िंदगानी और है
अपने जी में हमने ठानी और है
आतिश -ऐ -दोज़ख में ये गर्मी कहाँ
सोज़-ऐ -गम है निहानी और है
बारह देखीं हैं उन की रंजिशें ,
पर कुछ अब के सरगिरानी और है
देके खत मुँह देखता है नामाबर ,
कुछ तो पैगाम -ऐ -ज़बानी और है
हो चुकीं ‘ग़ालिब’ बलायें सब तमाम ,
एक मर्ग -ऐ -नागहानी और है .


हम को मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन
दिल के ख़ुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है


क़ासिद के आते आते ख़त इक और लिख रखूँ,
मैं जानता हूँ जो वो लिखेंगे जवाब में !


हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को “ग़ालिब” यह ख्याल अच्छा है


आतिश-ए-दोज़ख़ में ये गर्मी कहाँ
सोज़-ए-ग़म-हा-ए-निहानी और है|


तुझसे ही हर सुबह हो मेरी,
तुझसे ही हर शाम,
कुछ ऐसा रिश्ता बन गया तुझसे,
की हर सासो में सिर्फ तेरा ही नाम…


उम्मीद तो हमने ये की थी,
मै राँझा तेरा, तू मेरी ही बने,
पर शायद खुदा को ये मजूर न था,
की तू मेरी तकदीर बने…


वो आए घर में हमारे,
खुदा की क़ुदरत हैं!
कभी हम उमको,
कभी अपने घर को देखते हैं


मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब,
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी.


तेरे वादे पर जिये हम, तो यह जान, झूठ जाना,
कि ख़ुशी से मर न जाते, अगर एतबार होता


क़ैद में है तेरे वहशी को वही ज़ुल्फ़ की याद
हां कुछ इक रंज गरां बारी-ए-ज़ंजीर भी था


आईना क्यूं न दूं कि तमाशा कहें जिसे
ऐसा कहां से लाऊं कि तुझ सा कहें जिसे


रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है


हाथों की लकीरों पे मत जा ऐ गालिब
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते


इश्क़ मुझको नहीं वेहशत ही सही
मेरी वेहशत तेरी शोहरत ही सही
कटा कीजिए न तालुक हम से
कुछ नहीं है तो अदावत ही सही


न सुनो गर बुरा कहे कोई,
न कहो गर बुरा करे कोई !!
रोक लो गर ग़लत चले कोई,
बख़्श दो गर ख़ता करे कोई !!


मैं नादान था जो वफ़ा को तलाश करता रहा ग़ालिब
यह न सोचा के एक दिन अपनी साँस भी बेवफा हो जाएगी


मोहब्बत में नहीं है फ़र्क़ जीने और मरने का
उसी को देख कर जीते हैं जिस काफ़िर पे दम निकले |


उनको देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक,
वो समझते हैं के बीमार का हाल अच्छा है
इश्क़ पर जोर नहीं है ये वो आतिश ‘ग़ालिब’,
कि लगाये न लगे और बुझाये न बुझे


यही है आज़माना तो सताना किसको कहते हैं,
अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तहां क्यों हो
हमको मालूम है जन्नत की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के खुश रखने को ‘ग़ालिब’ ये ख़याल अच्छा है


फिर तेरे कूचे को जाता है ख्याल
दिल -ऐ -ग़म गुस्ताख़ मगर याद आया
कोई वीरानी सी वीरानी है .
दश्त को देख के घर याद आया


तुम से बेजा है मुझे अपनी तबाही का गिला
उसमें कुछ शाएबा-ए-ख़ूबिए-तक़दीर भी था


जी ढूंढता है फिर वही फुर्सत के, रात-दिन
बैठे रहें तसव्वुर-ए-जानां किए हुए


तोड़ा कुछ इस अदा से तालुक़ उस ने ग़ालिब
के सारी उम्र अपना क़सूर ढूँढ़ते रहे


हाथो की लकीरों पे मत जा ए ग़ालिब,
नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते|


हर रंज में ख़ुशी की थी उम्मीद बरक़रार,
तुम मुस्कुरा दिए मेरे ज़माने बन गये !!


बिजली इक कूंद गई आंखों के आगे तो क्या
बात करते के मैं लब तिश्ना-ए-तक़रीर भी था


आँखें जो खुली तो उन्हें अपने करीब पाया ना था
कभी थे रूह में शामिल आज उनका साया ना था
बेपनाह मोहब्बत की जिनसे उम्मीदें लिये बैठे थे
उनसे तन्हाइयों की सौगातें मिलेंगी बताया ना था
एक हम ही कसीदे हुस्न के हर बार पढ़ते रहे पर
उसने तो कभी हाल-ए-दिल सुनाया ना था


तुम अपने शिकवे की बातें
न खोद खोद के पूछो
हज़र करो मिरे दिल से
कि उस में आग दबी है..
गा़लिब


सादगी पर उस के मर जाने की हसरत दिल में है
बस नहीं चलता की फिर खंजर काफ-ऐ-क़ातिल में है
देखना तक़रीर के लज़्ज़त की जो उसने कहा
मैंने यह जाना की गोया यह भी मेरे दिल में है


गैर ले महफ़िल में बोसे जाम के
हम रहें यूँ तश्ना-ऐ-लब पैगाम के
खत लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो
हम तो आशिक़ हैं तुम्हारे नाम के
इश्क़ ने “ग़ालिब” निकम्मा कर दिया
वरना हम भी आदमी थे काम के

Conclusion

Ghalib’s Shayari in Hindi is a reflection of the human condition, as he explores the complexities of love, longing, and existential contemplation.

This collection serves as a testament to the timeless appeal and enduring legacy of Mirza Ghalib’s poetic artistry.

Each verse resonates with profound emotions, inviting readers to immerse themselves in the intricate tapestry of Ghalib’s thoughts and feelings.

Whether you seek solace in melancholy, delight in the power of love, or revel in the beauty of language, Ghalib’s Shayari offers a profound and unforgettable journey through the depths of human experience.